Hamida banu/हमीदा बानू भारत की 1 महिला रेसलर|
Hamida Banu/हमीदा बानो: भारत की पहली महिला पहलवान के अतुल्य जीवन के बारे में सब कुछ
हमीदा बानो को “अलीगढ़ का अमेज़ॅन” कहा जाने लगा।
हमीदा बानो, जिन्हें व्यापक रूप से भारत की पहली पेशेवर महिला पहलवान माना जाता है, का जन्म 1900 के प्रारंभ में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के पास हुआ था। वह 1940 और 50 के दशक में स्टारडम की ओर बढ़ीं, उस समय जब एथलेटिक्स में महिलाओं की भागीदारी को प्रचलित सामाजिक मानदंडों द्वारा दृढ़ता से हतोत्साहित किया गया था। उनके शानदार कारनामों और जीवन से भी बड़े व्यक्तित्व ने उन्हें वैश्विक प्रसिद्धि दिलाई। वह एक पथप्रदर्शक थीं|
Hamida Banu/हमीदा बनो कौन थी?
हमीदा बनो का जन्म 1900 की शुरुआत में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के पास पहलवानों के एक गांव में हुआ था|उन्हों ने उस समय कुश्ती में प्रवेश किया जब , एथलेटिक्स में महिलाओं की भागी दारी को प्रचलित सामाजिक मानदंडों द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं थी|
हालांकि, सुश्री बनो, जूनूनी थीं और उन्हों ने वैसे भी पुरुषों के साथ प्रतिस्पर्धा की, सभी पुरुष पहलवानों को एक खुली चुनौती दी और उन्हें हराने के लिए पहले पहलवान से शादी करने का वादा किया, कुछ सोर्स कि माने तो,
सुश्री बानो का करियर इंटरनेशनल स्तर तक फैला हुआ था|
Hamida Banu/हमीदा बनो को किस चीज़ ने लोकप्रिय बनाया?
“मुझे एक मुकाबले में हराओ और मैं तुमसे शादी कर लुंगी”|1954 यही वाक्य ने हमीदा बनो को लोक प्रिय बनाया|
मई में, शुश्री बानो वर्ष की अपनी तीसरी लड़ाई के लिए गुजरात के वडोदरा पहुंची|हालांकि, जिस पहलवान से उनका मुकाबला होना था,वह आखरी समय में मैच से हट गया था, जिससे उनके अगले प्रतिद्वंदी बाबा पहलवान सामने आ गया|मुकाबला केवल एक मिनट और 34 सेकंड तक चला जब हमीदा बनो ने मैच जीत लिया|इस बाद उन्होंने पेशेवर कुश्ती से संन्यास ले लिया|
इस बाद, सुश्री बानो का वजन, ऊंचाई और आहार सभी समाचार बन गए|उनके जीवित परिवार के सदस्ययो से पता चलता है कि उनकी ताकत ने , उस समय के रूढ़ी वादी दृष्टिकोण के साथ मिलकर, उन्हें UP के एक प्रदेश मिर्जापुर को छोर कर जाने पर मजबूर किया|
1987 की एक पुस्तक मे, लेखक महेश्वर दयाल ने लिखा है कि शुश्री Hamida Banu कि UP और Panjab के मुकाबले से मिली प्रसिद्धि ने लोगों को दूर दूर तक आकर्षित किया| हालांकि, उन्हें कुछ लोगो की चुनौती का भी शामना करना पड़ा जो उनके शार्वजनिक प्रदर्शन से क्रोधित थे|एक बार उनके प्रशंको ने उनकी आलोचना भी कि थी, उनपर पथराव भी किया गया था|
हालांकि, इसने शुश्री Hamida Banu को आगे बढ़ाने से कभी नहीं रोका|1954 में, उन्होंने वेरा लिस्टिन पर विजय प्राप्त किया, जिसे रूस की “मादा भालू”कहा जाता था|उसी वर्ष, उन्होंने घोषणा की कि वह यूरोप जा कर वहा के पहलवानों से लड़ेंगी|
Hamida Banu/ हमीदा बनो व्यक्तिगत जीवन
सोर्स कि माने तो शुश्री बनो मुंबई में सुश्री लिस्टिन को हराने के बाद , अचानक से गायब हो गई|बीबीसी के मुताबिक, यहीं वह मोड़ था जहा उनकी जिंदिगी बदल गई|उनके पोते फिरोज़ के मुताबिक सुश्री बानो के कोच सलाम पहलवान को उनका जाना पसंद नहीं था|
सुश्री बानो के कोच सलाम पहलवान की बेटी सहारा ने कहा कि उसके पिता ने सुश्री बानो से शादी कि थी,जिसे वह अपनी सौतेली मां मानती थी|हालांकि, शुश्री Hamida Banu का पोता ,जो 1986 में उनकी मृत्यु तक उनके साथ रहा, असहमत था|कुछ रिपोर्ट में शेख के हवाले से कहा गया है,”वह वास्तव में उनके साथ रहीं, लेकिन उनसे शादी नहीं की|”
बीबीसी के मुताबिक, सुश्री बानो दूध बेंच कर और इमारतें किराए पर दे कर अपनी जीविका चलती थीं|जब उनके पास पैसे खत्म हो जाते थे,तो वह सड़क किनारे घर का बना खाना बेंचती थीं|